भारतवर्ष में प्रतिहारो ( परिहारों) के ठिकाने
ई. स 1129 के बाद ग्वालियर पर प्रतिहारो का अधिकार तथा पहला प्रतिहार शासक परमलदेव था ग्वालियर पर प्रतिहारो का लगभग सौ वर्षों तक अधिकार रहा तथा वर्तमान में भी ग्वालियर के आसपास कई गांवो में प्रतिहारो का निवास है।
सन 1258 ई. मे बलबन बहुत शक्तिशाली हो गयाथा उसने बडी सेना लेकर ग्वालियर पर आक्रमण कर दिया उस समयतक चाहडदेव स्वर्गवासी हो चुका था। उसका नाती " गणपति याजपल्ल " दुर्ग का अधिपति था।इसमें इतनी क्षमता नही थी की कुछ हजार सैनिकों के बल पर वह दिल्ली की सेना का सामना कर सके। अस्तु वह रात में ही परिवार सहित बिहार चला गया। जहां इनके वंशजो ने परिहारपुर ग्राम बसाया और आज भी हजारो की संख्या में आबाद है। और बाकी कुछ प्रतिहार दल झगरपुर , वीसडीह , मैनीयर उत्तर सुरिजपुर , सुखपुरा, हरपुरा आदि ग्रामों मे आबाद है। चाहडदेव ने अपने राज्य का विस्तार चंदेरी तक कर लिया था। इस तरह कभी सत्ता मे तो कभी सत्ताहीन होकर ग्वालियर मे परिहारो का आवास रहा है और लगभग 150 वर्षो तक संघर्षरत शासन किया। और आज भी ग्वालियर अंचल मे लगभग 25 से उपर गांव है प्रतिहारो के जो आवासित है।सारंगदेव प्रतिहार13 वीं शताब्दी तक ग्वालियर से परिहार वंश का पतन हो गया और बचे कुचे परिहार अलग अलग जगह बस गये। जिसमे सारंगदेव ग्वालियर को छोडकर मऊसहानियां आ गये। एवं इनके अन्य भाई राघवदेव परिहार रामगढ जिगनी चले गये, रामदेव परिहार औरैया गये एवं छोटे भाई गंगरदेव परिहार डुमराई में जा बसे जहां आज भी इनके वंशज लगभग 30 गांवो से उपर आबाद है।
ई. स 1129 के बाद ग्वालियर पर प्रतिहारो का अधिकार तथा पहला प्रतिहार शासक परमलदेव था ग्वालियर पर प्रतिहारो का लगभग सौ वर्षों तक अधिकार रहा तथा वर्तमान में भी ग्वालियर के आसपास कई गांवो में प्रतिहारो का निवास है।
सन 1258 ई. मे बलबन बहुत शक्तिशाली हो गयाथा उसने बडी सेना लेकर ग्वालियर पर आक्रमण कर दिया उस समयतक चाहडदेव स्वर्गवासी हो चुका था। उसका नाती " गणपति याजपल्ल " दुर्ग का अधिपति था।इसमें इतनी क्षमता नही थी की कुछ हजार सैनिकों के बल पर वह दिल्ली की सेना का सामना कर सके। अस्तु वह रात में ही परिवार सहित बिहार चला गया। जहां इनके वंशजो ने परिहारपुर ग्राम बसाया और आज भी हजारो की संख्या में आबाद है। और बाकी कुछ प्रतिहार दल झगरपुर , वीसडीह , मैनीयर उत्तर सुरिजपुर , सुखपुरा, हरपुरा आदि ग्रामों मे आबाद है। चाहडदेव ने अपने राज्य का विस्तार चंदेरी तक कर लिया था। इस तरह कभी सत्ता मे तो कभी सत्ताहीन होकर ग्वालियर मे परिहारो का आवास रहा है और लगभग 150 वर्षो तक संघर्षरत शासन किया। और आज भी ग्वालियर अंचल मे लगभग 25 से उपर गांव है प्रतिहारो के जो आवासित है।सारंगदेव प्रतिहार13 वीं शताब्दी तक ग्वालियर से परिहार वंश का पतन हो गया और बचे कुचे परिहार अलग अलग जगह बस गये। जिसमे सारंगदेव ग्वालियर को छोडकर मऊसहानियां आ गये। एवं इनके अन्य भाई राघवदेव परिहार रामगढ जिगनी चले गये, रामदेव परिहार औरैया गये एवं छोटे भाई गंगरदेव परिहार डुमराई में जा बसे जहां आज भी इनके वंशज लगभग 30 गांवो से उपर आबाद है।
(2) अलीपूरा के प्रतिहार
अलीपुरा , पन्ना, बुंदेलखंड, जुझौति प्रदेश, बड़ा गांव आदि के आस पास का अंचल।
अलीपुरा , पन्ना, बुंदेलखंड, जुझौति प्रदेश, बड़ा गांव आदि के आस पास का अंचल।
(3) मलहाजनी के प्रतिहार
वर्तमान में इनके वंशजो के आठ गांव जिला इटावा और तीन गांव जिला रायबरेली में है। वर्तमान में मलहाजनी के वर्तमान ठाकुर कार्तिकेय प्रताप सिंह है।।
वर्तमान में इनके वंशजो के आठ गांव जिला इटावा और तीन गांव जिला रायबरेली में है। वर्तमान में मलहाजनी के वर्तमान ठाकुर कार्तिकेय प्रताप सिंह है।।
(4) पंजाब और हिमाचल के प्रतिहार
पंजाब में प्रतिहार (परिहार) क्षत्रिय जिला अमृतसर, होशियार पुर, तथा सियालकोट आदि स्थानों में हैं। इसी प्रकार रियासत जम्मू में तथा हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, ऊना जिला में तथा बिलासपुर आदि स्थानों में काफी संख्या में हैं। ये स्वयं को तखी प्रतिहार मानते हैं।
राजस्थान के किसी स्थान से हरिहरदेव नामक प्रतिहार अपने भाई को राज्य देकर ज्वालामुखी की तीर्थ यात्रा पर गया था । वह वापस लौटकर नहीं आया और उसने वहीं पर कांगड़ा के कटोच वंशी शासक त्रिलोकचंद की पुत्री से विवाह कर लिया और दहेज में मिले राज्य का शासक हुआ । वर्तमान में पंजाब एवं अन्य समीप के प्रान्तों में जो प्रतिहार हैं वे इसी राजा हरिहरदेव के वंशज हैं । और ये भी हो सकता है यह कन्नौज के प्रतिहार सम्राट भोजदेव प्रथम के समय में पंजाब में जाने चाहिए क्यूकी उसने पंजाब का सूबेदार अलखान प्रतिहार को नियुक्त किया था ।
इसी प्रकार दोआब और जालंधर में भी तखी प्रतिहार हैं वे भड़ाना गाँव के नाम से भद कहलाते । उनकी पदवी महता है और इन तखी प्रतिहारों का गांव कुशल है
पंजाब में प्रतिहार (परिहार) क्षत्रिय जिला अमृतसर, होशियार पुर, तथा सियालकोट आदि स्थानों में हैं। इसी प्रकार रियासत जम्मू में तथा हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, ऊना जिला में तथा बिलासपुर आदि स्थानों में काफी संख्या में हैं। ये स्वयं को तखी प्रतिहार मानते हैं।
राजस्थान के किसी स्थान से हरिहरदेव नामक प्रतिहार अपने भाई को राज्य देकर ज्वालामुखी की तीर्थ यात्रा पर गया था । वह वापस लौटकर नहीं आया और उसने वहीं पर कांगड़ा के कटोच वंशी शासक त्रिलोकचंद की पुत्री से विवाह कर लिया और दहेज में मिले राज्य का शासक हुआ । वर्तमान में पंजाब एवं अन्य समीप के प्रान्तों में जो प्रतिहार हैं वे इसी राजा हरिहरदेव के वंशज हैं । और ये भी हो सकता है यह कन्नौज के प्रतिहार सम्राट भोजदेव प्रथम के समय में पंजाब में जाने चाहिए क्यूकी उसने पंजाब का सूबेदार अलखान प्रतिहार को नियुक्त किया था ।
इसी प्रकार दोआब और जालंधर में भी तखी प्रतिहार हैं वे भड़ाना गाँव के नाम से भद कहलाते । उनकी पदवी महता है और इन तखी प्रतिहारों का गांव कुशल है
(5) बुंदेलखंड ओर जुझौति के प्रतिहार
उसर पुनीत, दर्षाण, जेजाकभुक्ती, तथा बुंदेलखंड आदि में आबाद तथा उत्तरप्रदेश की हंडिया तहसील के फूलपुर,बीबीपुर, कुमौना,नसरतपुर, तथा हरिश्चंद्रपुर(इटावा) के आठ गांवो में एवम् मौदहा तथा पाटनपुर गांवो में आबाद है।
उसर पुनीत, दर्षाण, जेजाकभुक्ती, तथा बुंदेलखंड आदि में आबाद तथा उत्तरप्रदेश की हंडिया तहसील के फूलपुर,बीबीपुर, कुमौना,नसरतपुर, तथा हरिश्चंद्रपुर(इटावा) के आठ गांवो में एवम् मौदहा तथा पाटनपुर गांवो में आबाद है।
(6) चौबीसी के प्रतिहार
बुंदेलखंड अंचल के रामगढ़ जिगनी आदि बारह गांवो में आबाद तथा इसी अंचल के मंगरोठ, मझगवां, लिधोरा, घगवा,अटोलया, गुढ़ा चिकासी आदि में तथा प्रतिहारों के प्रसिद्ध दुर्ग रामगढ़ पर बुंदेलों के अधिकार हो जाने से तथा वहाँ के शासक महासिंह के युद्ध मे मारे जाने पर इस क्षेत्र के प्रतिहारों की शक्ति क्षीण हो गई। महासिंह के बडे पुत्र तो ग्वालियर की गद्दी पर थे तथा छोटे दो पुत्र वापस रामगढ आ गये। जहां बुंदेला शासक ने बडे भाई मदनदेव प्रतिहार को राव की उपाधि दी तथा जिगनी जागीर मे दी। इसके वंशधर बारह गांवो मे है। राव मदनदेव के सात पुत्र थे, राव जैतसिंह जिगनी, पहाडसिंह मंगरोठ, बानसिंह मझगवां, रणसिंह लिधौरा, बलसिंह गधवा, सिहणदेव अटैलिया, औधणसिंह गुढा चिकासी आदि मे इनके वंशज है। राव जैतसिंह के दस पुत्र थे, राव जसकरण सिंह जिगनी तथा शत्रुजीत, प्रतापसिंह और हाथीराज सिंह भी जिगनी मे ही रहे। सबदल सिंह को कटरा मानपुर (इलाहाबाद) मे जागीर मिली, चितर सिंह को बिल्टी कानपुर में, रामसिंह को मलहेटा की तथा मुकुट सिंह को झगडपुर जिला उन्नाव की जागीर मिली और भूपतसिंह एवं रतन सिंह मलहेटा जिला हमीरपुर मे रहे उक्त स्थानों पर आज भी इनके वंशज अच्छी संख्या में आबाद है।
बुंदेलखंड अंचल के रामगढ़ जिगनी आदि बारह गांवो में आबाद तथा इसी अंचल के मंगरोठ, मझगवां, लिधोरा, घगवा,अटोलया, गुढ़ा चिकासी आदि में तथा प्रतिहारों के प्रसिद्ध दुर्ग रामगढ़ पर बुंदेलों के अधिकार हो जाने से तथा वहाँ के शासक महासिंह के युद्ध मे मारे जाने पर इस क्षेत्र के प्रतिहारों की शक्ति क्षीण हो गई। महासिंह के बडे पुत्र तो ग्वालियर की गद्दी पर थे तथा छोटे दो पुत्र वापस रामगढ आ गये। जहां बुंदेला शासक ने बडे भाई मदनदेव प्रतिहार को राव की उपाधि दी तथा जिगनी जागीर मे दी। इसके वंशधर बारह गांवो मे है। राव मदनदेव के सात पुत्र थे, राव जैतसिंह जिगनी, पहाडसिंह मंगरोठ, बानसिंह मझगवां, रणसिंह लिधौरा, बलसिंह गधवा, सिहणदेव अटैलिया, औधणसिंह गुढा चिकासी आदि मे इनके वंशज है। राव जैतसिंह के दस पुत्र थे, राव जसकरण सिंह जिगनी तथा शत्रुजीत, प्रतापसिंह और हाथीराज सिंह भी जिगनी मे ही रहे। सबदल सिंह को कटरा मानपुर (इलाहाबाद) मे जागीर मिली, चितर सिंह को बिल्टी कानपुर में, रामसिंह को मलहेटा की तथा मुकुट सिंह को झगडपुर जिला उन्नाव की जागीर मिली और भूपतसिंह एवं रतन सिंह मलहेटा जिला हमीरपुर मे रहे उक्त स्थानों पर आज भी इनके वंशज अच्छी संख्या में आबाद है।
(7)। > उरई और उन्नाव के प्रतिहार < -----
ग्वालियर के प्रतिहार क्षत्रिय शासक विजयपालदेव के तृतीय पुत्र शिविरशाह ने वि.सं. 1123 में खंगारो से कालपी, महोवा आदि विजय किया तथा कुर्मियों से कोंच ले लिया और उरई को अपनी राजधानी बनाई। इनके दो पुत्र थे छत्रपालदेव और ब्रजदेव। ब्रजदेव परिहार गंगा स्नान करने गये थे, उनका उन्नाव में झगडा हो गया , इन्होने उन्नाव को विजय किया। इनके वंशज उन्नाव ,रायबरेली, जालौन तथा कानपुर आदि स्थानो मे है।
ग्वालियर के प्रतिहार क्षत्रिय शासक विजयपालदेव के तृतीय पुत्र शिविरशाह ने वि.सं. 1123 में खंगारो से कालपी, महोवा आदि विजय किया तथा कुर्मियों से कोंच ले लिया और उरई को अपनी राजधानी बनाई। इनके दो पुत्र थे छत्रपालदेव और ब्रजदेव। ब्रजदेव परिहार गंगा स्नान करने गये थे, उनका उन्नाव में झगडा हो गया , इन्होने उन्नाव को विजय किया। इनके वंशज उन्नाव ,रायबरेली, जालौन तथा कानपुर आदि स्थानो मे है।
(8) कलहंस प्रतिहार वंश
वर्तमान में इस वंश के छह द्वारे प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में इनकी छह रियासते थी। वर्तमान समय मे इस शाखा के क्षत्रिय उत्तर प्रदेश के गोंडा, बस्ती, जिले मे शोहरतगढ जो राज्य था, तुलसीपुर, प्रतापगढ तथा बिहार के आरा , छपरा ,भागलपुर, शाहाबाद जिलो मे आवसित है।
वर्तमान में इस वंश के छह द्वारे प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में इनकी छह रियासते थी। वर्तमान समय मे इस शाखा के क्षत्रिय उत्तर प्रदेश के गोंडा, बस्ती, जिले मे शोहरतगढ जो राज्य था, तुलसीपुर, प्रतापगढ तथा बिहार के आरा , छपरा ,भागलपुर, शाहाबाद जिलो मे आवसित है।
(9) दगरावरसेला (चम्बलतट) के प्रतिहार
मदनपुर, उटशाना, बड़ोस, उमरैण,राजौरा। व रायपुर में थोड़े बहुत आबाद है। उत्तरप्रदेश के आगरा जिले में फरहौला, गुर्जा,कमले,मढिवायदपुर काकर खेड़ा, पिडोरा, अर्नोट, आदि गांवों व इनके आस पास काफी संख्या में आबाद है।
मदनपुर, उटशाना, बड़ोस, उमरैण,राजौरा। व रायपुर में थोड़े बहुत आबाद है। उत्तरप्रदेश के आगरा जिले में फरहौला, गुर्जा,कमले,मढिवायदपुर काकर खेड़ा, पिडोरा, अर्नोट, आदि गांवों व इनके आस पास काफी संख्या में आबाद है।
(10) ------- > सिंध के प्रतिहार < ---------
सिंध मे बसने के कारण ही ये सिंध परिहार कहलाते है। जैसलमेर के यदुवंशी भाटी क्षत्रियों ने इन्हे जाम की पदवी से विभूषित किया था। वर्तमान में ये राजस्थान मे कहीं - कहीं तथा सिंध (पाकिस्तान) और जूनागढ (गुजरात) आदि स्थानों पर निवास करते है एवं ये लगभग दो हजार की संख्या मे आबाद है।
सिंध मे बसने के कारण ही ये सिंध परिहार कहलाते है। जैसलमेर के यदुवंशी भाटी क्षत्रियों ने इन्हे जाम की पदवी से विभूषित किया था। वर्तमान में ये राजस्थान मे कहीं - कहीं तथा सिंध (पाकिस्तान) और जूनागढ (गुजरात) आदि स्थानों पर निवास करते है एवं ये लगभग दो हजार की संख्या मे आबाद है।
(11) सोंधिया प्रतिहार
प्रतिहार शासक लुल्लर के सातवे वंशज दीपसिंह ने सिंध नदी के तट पर शत्रु को परास्त करके विजय हासिल की थी अत: इनके वंशज सोंधिया प्रतिहार कहलाए। वर्तमान में इनके वंशज मध्यप्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र तथा झालावाड़ के क्षेत्र में आबाद है।
प्रतिहार शासक लुल्लर के सातवे वंशज दीपसिंह ने सिंध नदी के तट पर शत्रु को परास्त करके विजय हासिल की थी अत: इनके वंशज सोंधिया प्रतिहार कहलाए। वर्तमान में इनके वंशज मध्यप्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र तथा झालावाड़ के क्षेत्र में आबाद है।
(12) देवल प्रतिहार
यह वंश राजस्थान के जालौर जिले में आबाद है।
इस शाखा में अनेक सूरमा हुवे जिनमें कुंवर नरपाललदेव देवल का नाम विशेष उल्लेखनीय है
जिसका वीरतापूर्वक युद्ध करते हुवे सिर कट गया था। सिर कटने के बाद भी वह युद्धरत रहा तथा शत्रु सेना का भारी विनाश करके हाहाकार मचा दिया। इसी शाखा के ठाकुर रायधवल ने अपनी पुत्री का विवाह मेवाड़ के राणा प्रताप सिंह के साथ किया था ।
जालौर क्षेत्र के जसवंतपुरा, रानीवाडा पहाडपुरा मुख्य ठिकाने है इन क्षेत्रों में काफी अच्छी संख्या में देवल प्रतिहार है एवं रानीवाडा विधानसभा से वर्तमान विधायक नारायणसिंह देवल है।
यह वंश राजस्थान के जालौर जिले में आबाद है।
इस शाखा में अनेक सूरमा हुवे जिनमें कुंवर नरपाललदेव देवल का नाम विशेष उल्लेखनीय है
जिसका वीरतापूर्वक युद्ध करते हुवे सिर कट गया था। सिर कटने के बाद भी वह युद्धरत रहा तथा शत्रु सेना का भारी विनाश करके हाहाकार मचा दिया। इसी शाखा के ठाकुर रायधवल ने अपनी पुत्री का विवाह मेवाड़ के राणा प्रताप सिंह के साथ किया था ।
जालौर क्षेत्र के जसवंतपुरा, रानीवाडा पहाडपुरा मुख्य ठिकाने है इन क्षेत्रों में काफी अच्छी संख्या में देवल प्रतिहार है एवं रानीवाडा विधानसभा से वर्तमान विधायक नारायणसिंह देवल है।
(13) जेठावा प्रतिहार
यह वंश मूल रूप से कश्मीर का है। तथा वहा से सिंध होते हुए काठियावाड़ (सौराष्ट्र) पहुंचकर अपना राज्य स्थापित किया। यह क्षेत्र जेठवाड़ भी कहलाता है। इसकी राजधानी धुमली थी जिसका दूसरा नाम भूतांबिका था। इसलिए यहां के निवासी भुतहा प्रतिहार भी कहलाते है।जेठवा शासकों ने सौराष्ट्र में श्रीनगर ग्राम बसाया। तथा सूर्य का मंदिर बनवाया। जेठवा शासक राणा सुल्तान जी ने ई. स सन 1671 से 1699 में पोरबंदर में किले का निर्माण करवाया। भारत के स्वतंत्र होकर देशी राज्यो के विलनिकरण तक पोरबंदर पर जेठवा प्रतिहारो का शासन रहा। आज भी इस क्षेत्र मे पांच हजार से उपर जेठवा परिहार राजपूत निवास कर रहे है।
यह वंश मूल रूप से कश्मीर का है। तथा वहा से सिंध होते हुए काठियावाड़ (सौराष्ट्र) पहुंचकर अपना राज्य स्थापित किया। यह क्षेत्र जेठवाड़ भी कहलाता है। इसकी राजधानी धुमली थी जिसका दूसरा नाम भूतांबिका था। इसलिए यहां के निवासी भुतहा प्रतिहार भी कहलाते है।जेठवा शासकों ने सौराष्ट्र में श्रीनगर ग्राम बसाया। तथा सूर्य का मंदिर बनवाया। जेठवा शासक राणा सुल्तान जी ने ई. स सन 1671 से 1699 में पोरबंदर में किले का निर्माण करवाया। भारत के स्वतंत्र होकर देशी राज्यो के विलनिकरण तक पोरबंदर पर जेठवा प्रतिहारो का शासन रहा। आज भी इस क्षेत्र मे पांच हजार से उपर जेठवा परिहार राजपूत निवास कर रहे है।
(14) इंदा प्रतिहार
सूर् पड़िहार के पुत्र इंद्र ने अपने नाम से एक अलग शाखा चलाई जो कि इंदा पड़िहार कहलाये | वर्तमान में मारवाड़ की शेरगढ़ तहसील में इंदा पड़िहारो के कुल 27 गांव हैं जो कि इंदावटी के नाम से जानी जाती है यह पूरे गांव एक दूसरे से सटे हुए हैं जिससे इनका क्षेत्रफल उतना नहीं है जितना 27 गांवों का होना चाहिए इंदावटी के अलावा भी इनके छिटपुट तौर पर बीकानेर जिले में भी घर आबाद है कोलायत तहसील में एक इंदो का गांव है जिसको इंदो का बाला कहते हैं
सूर् पड़िहार के पुत्र इंद्र ने अपने नाम से एक अलग शाखा चलाई जो कि इंदा पड़िहार कहलाये | वर्तमान में मारवाड़ की शेरगढ़ तहसील में इंदा पड़िहारो के कुल 27 गांव हैं जो कि इंदावटी के नाम से जानी जाती है यह पूरे गांव एक दूसरे से सटे हुए हैं जिससे इनका क्षेत्रफल उतना नहीं है जितना 27 गांवों का होना चाहिए इंदावटी के अलावा भी इनके छिटपुट तौर पर बीकानेर जिले में भी घर आबाद है कोलायत तहसील में एक इंदो का गांव है जिसको इंदो का बाला कहते हैं
(15) लुलावत पड़िहार (प्रतिहार)
राजस्थान में पड़िहारो के काफी संख्या में गांव है जो कि मूल रूप से लुलावत ही है परंतु समय के साथ-साथ अपने पूर्वजों के नाम से उप शाखाओं में में विभक्त होते गए संघन घनत्व की दृष्टि से अवलोकन किया जाए तो रतनसिंघोत लुलावतो की तादाद सबसे ज्यादा हैं बीकानेर तहसील का बेलासर गांव पूरे राजस्थान में इनका सबसे बड़ा गांव है तथा द्वितीय श्रेणी पर पोकरण तहसील का गांव छायण आता है इन दो गांवों के अतिरिक्त इस गोत्र के पड़िहार बीकानेर, रतनगढ़, हुडेरा, सूरतगढ़, नोहर, दून्कर, गोपालसर, धीऀगधाणिया, जाजीवाल, बावरला, जालेली, घुड़ला, व कोलार (पंजाब) आदि गांवों में आबाद है
उपरोक्त गांवों के अलावा राजस्थान के बहुत से दूसरे गांवों में लुलावत पड़िहारो की अन्य उपशाखाएं भी आबाद हैं जैसे कि - उदासर (बीकानेर), दुलचासर, सूरतसिंहपुरा, सुरधना पड़िहारान, मेहरासर, खारड़ा, नापासर, नांदड़ा, अमरपुरा भाटियान, इत्यादि एवं डूंगरगढ, सरदारशहर, नोखा, नागौर, ओसिया, शेरगढ़ तहसीलो के कुछ गांवों में भी आबाद है
उपरोक्त कुछ गांवों में उदयसिंघोत और कुछ गांवों में नादावत व किसी किसी गांव में रामोटा (रामावत) पड़िहार भी आबाद है तथा मूल रूप से अवलोकन किया जाए तो यह सभी लुलावत पड़िहारो से ही निकली हुई उपशाखाएं हैं (सिर्फ रामोटा पड़िहारो को छोड़कर)
लुलावत शाखा के अन्य गांव खारा बीकानेर हुसनसर बीकानेर रजपूरिया व सानई जोधपुर,खाखूरी(फलोदी जोधपुर) हरियाढाणा,रणसी गांव,खि़रजाँ भोजा, अजबार, बेलवा, नवतला, खुडियाला, बस्तवा, भालू राजवा खियासरिया, बांकियावास कल्लां,बोङाना, नोख, खाखूसरी,आदि
राजस्थान में पड़िहारो के काफी संख्या में गांव है जो कि मूल रूप से लुलावत ही है परंतु समय के साथ-साथ अपने पूर्वजों के नाम से उप शाखाओं में में विभक्त होते गए संघन घनत्व की दृष्टि से अवलोकन किया जाए तो रतनसिंघोत लुलावतो की तादाद सबसे ज्यादा हैं बीकानेर तहसील का बेलासर गांव पूरे राजस्थान में इनका सबसे बड़ा गांव है तथा द्वितीय श्रेणी पर पोकरण तहसील का गांव छायण आता है इन दो गांवों के अतिरिक्त इस गोत्र के पड़िहार बीकानेर, रतनगढ़, हुडेरा, सूरतगढ़, नोहर, दून्कर, गोपालसर, धीऀगधाणिया, जाजीवाल, बावरला, जालेली, घुड़ला, व कोलार (पंजाब) आदि गांवों में आबाद है
उपरोक्त गांवों के अलावा राजस्थान के बहुत से दूसरे गांवों में लुलावत पड़िहारो की अन्य उपशाखाएं भी आबाद हैं जैसे कि - उदासर (बीकानेर), दुलचासर, सूरतसिंहपुरा, सुरधना पड़िहारान, मेहरासर, खारड़ा, नापासर, नांदड़ा, अमरपुरा भाटियान, इत्यादि एवं डूंगरगढ, सरदारशहर, नोखा, नागौर, ओसिया, शेरगढ़ तहसीलो के कुछ गांवों में भी आबाद है
उपरोक्त कुछ गांवों में उदयसिंघोत और कुछ गांवों में नादावत व किसी किसी गांव में रामोटा (रामावत) पड़िहार भी आबाद है तथा मूल रूप से अवलोकन किया जाए तो यह सभी लुलावत पड़िहारो से ही निकली हुई उपशाखाएं हैं (सिर्फ रामोटा पड़िहारो को छोड़कर)
लुलावत शाखा के अन्य गांव खारा बीकानेर हुसनसर बीकानेर रजपूरिया व सानई जोधपुर,खाखूरी(फलोदी जोधपुर) हरियाढाणा,रणसी गांव,खि़रजाँ भोजा, अजबार, बेलवा, नवतला, खुडियाला, बस्तवा, भालू राजवा खियासरिया, बांकियावास कल्लां,बोङाना, नोख, खाखूसरी,आदि
16 रामोटा(रामावत प्रतिहार)
नान्दड़ी, नान्दड़ा कलाँ खूर्द,कुथड़ी,डिगाड़ी,जालेली, हिरादेसर जोधपुर, गुढ़ा बीकानेर इन गांवो में सीमित संख्या में ही आबाद है। कारण है वहा के इतिहास एवं इतिहासिक देस्तावजो का संरक्षण व संवर्द्धन नहीं हो पाया है जो कि आज लगभग अनूपलब्ध तथा एक गहन शोध का विषय है।
नान्दड़ी, नान्दड़ा कलाँ खूर्द,कुथड़ी,डिगाड़ी,जालेली, हिरादेसर जोधपुर, गुढ़ा बीकानेर इन गांवो में सीमित संख्या में ही आबाद है। कारण है वहा के इतिहास एवं इतिहासिक देस्तावजो का संरक्षण व संवर्द्धन नहीं हो पाया है जो कि आज लगभग अनूपलब्ध तथा एक गहन शोध का विषय है।
(17) चौनिया प्रतिहार
यह फलोदी(राज.) में आबाद हो सकते है।
यह फलोदी(राज.) में आबाद हो सकते है।
(18)मुढाड (मडाड प्रतिहार)
करनाल,कुरुक्षेत्र,जीन्
द,अम्बाला,पटियाला,रोपड़,सहारनपुर,रूडकी आदि में मिलते हैं अब मुंढाड राजपूत वंश हरियाणा के 80 गांव में बसता है।
करनाल,कुरुक्षेत्र,जीन्
द,अम्बाला,पटियाला,रोपड़,सहारनपुर,रूडकी आदि में मिलते हैं अब मुंढाड राजपूत वंश हरियाणा के 80 गांव में बसता है।
== प्रतिहार/परिहार वंश की वर्तमान स्थिति==
भले ही यह विशाल प्रतिहार राजपूत साम्राज्य 15 वीं शताब्दी के बाद में छोटे छोटे राज्यों में सिमट कर बिखर हो गया हो लेकिन इस वंश के वंशज राजपूत आज भी इसी साम्राज्य की परिधि में मिलते हैँ।
आजादी के पहले भारत मे प्रतिहार राजपूतों के कई राज्य थे। जहां आज भी ये अच्छी संख्या में है।
मण्डौर, राजस्थान,जालौर, राजस्थान
माउंट आबू, राजस्थान पाली, राजस्थान बेलासर, राजस्थान चुरु , राजस्थान बाड़मेर राजस्थान कन्नौज, उतर प्रदेश हमीरपुर उत्तर प्रदेश प्रतापगढ, उत्तर प्रदेश झगरपुर, उत्तर प्रदेश उरई, उत्तर प्रदेश जालौन, उत्तर प्रदेश इटावा , उत्तर प्रदेश कानपुर, उत्तर प्रदेश उन्नाव, उतर प्रदेश उज्जैन, मध्य प्रदेश चंदेरी, मध्य प्रदेश ग्वालियर, मध्य प्रदेश जिगनी, मध्य प्रदेश झांसी, मध्य प्रदेश अलीपुरा, मध्य प्रदेश
नागौद, मध्य प्रदेश उचेहरा, मध्य प्रदेश दमोह, मध्य प्रदेश सिंगोरगढ़, मध्य प्रदेश एकलबारा, गुजरात मियागाम, गुजरात कर्जन, गुजरात काठियावाड़, गुजरात उमेटा, गुजरात दुधरेज, गुजरात खनेती, हिमाचल प्रदेश कुमहारसेन, हिमाचल प्रदेश जम्मू , जम्मू कश्मीर आदि
माउंट आबू, राजस्थान पाली, राजस्थान बेलासर, राजस्थान चुरु , राजस्थान बाड़मेर राजस्थान कन्नौज, उतर प्रदेश हमीरपुर उत्तर प्रदेश प्रतापगढ, उत्तर प्रदेश झगरपुर, उत्तर प्रदेश उरई, उत्तर प्रदेश जालौन, उत्तर प्रदेश इटावा , उत्तर प्रदेश कानपुर, उत्तर प्रदेश उन्नाव, उतर प्रदेश उज्जैन, मध्य प्रदेश चंदेरी, मध्य प्रदेश ग्वालियर, मध्य प्रदेश जिगनी, मध्य प्रदेश झांसी, मध्य प्रदेश अलीपुरा, मध्य प्रदेश
नागौद, मध्य प्रदेश उचेहरा, मध्य प्रदेश दमोह, मध्य प्रदेश सिंगोरगढ़, मध्य प्रदेश एकलबारा, गुजरात मियागाम, गुजरात कर्जन, गुजरात काठियावाड़, गुजरात उमेटा, गुजरात दुधरेज, गुजरात खनेती, हिमाचल प्रदेश कुमहारसेन, हिमाचल प्रदेश जम्मू , जम्मू कश्मीर आदि